खुद की रिपोर्ट टी न्यूज़ वर्ल्ड: –ख़ानदानी कानूनों पर एतिराज़ात-!
इन दिनों एक सोची- समझी साज़िश के तहत पूरे देश में मुस्लिम पर्सनल लाॅ के ख़िलाफ़ एक मुहिम छेड़ दी गई है। कहा जा रहा है कि इसके तहत मुसलमान औरतों पर जुल्म होता है। इस्लाम का ख़ानदानी क़ानून औरतों के साथ न्याय है और इंसाफ़ नहीं करता, इसीलिए उन्हें इंसाफ़ दिलाना संविधान के अनुसार सरकार की ज़िम्मेदारी है। इस पहलू से इस्लाम के क़ानूनों को निशाना बनाया जा रहा है। मिसाल के तौर पर कहा जा रहा है कि तलाक़ का हक़ मर्द को दिया गया है, जबकि अगर औरत अपने पति के ज़ालिमाना रवैये की वजह से उससे छुटकारा चाहे तो उसे इसका कोई अधिकार नहीं। मर्द को एक से अधिक बीवियां (चार तक) रखने की अनुमति है, जबकि यह औरत की गरिमा और उसकी मर्तबे के खिलाफ़ है। तलाक़ पाई हुई औरत के भरण- पोषण की इस्लाम में कोई व्यवस्था नहीं है। विरासत में औरत का हिस्सा मर्द से आधा रखा गया है। कोई परिवार किसी बच्चे को गोद लेना और उसे अपनी औलाद का दर्जा देना चाहे तो इस्लामी क़ानून उसकी इज़ाजत नहीं देता। यह और इसी तरह के बहुत से एतिराज़ात किए जाते हैं और इस्लाम के बारे में गलतफहमियां फैलाई जाती हैं। इस तरह इस्लामी क़ानूनों को ज़ालीमाना, औरतों के ह़कों को पामाल करने वाला और अंधकार युग के यादगार ठहराने की कोशिश की जाती है। दूसरी तरफ़ ख़ुद मुसलमान शरीअत के क़ानूनों की पूरी तरह जानकारी नहीं रखते और न ही वे उन पर पूरी तरह अमल करते हैं। इसीलिए वे अपने आपसी झगड़ों को क़ाज़ी की अदालत से हल कराने के बजाएं देश की अदालतों मैं ले जाते हैं, जहां कभी-कभी शरीअत के खिलाफ़ फ़ैसले सुना दिए जाते हैं। इसीलिए उचित मालूम होता है की आगे के लेख में इस्लाम के ख़ानदानी क़ानूनों की मुख्तसर वज़ाहत (व्याख्या) कर दी जाए ताकि उन पर किए जानेवाले एतिराज़ात दूर हो सकें और उनकी माक़ूलियत स्पष्ट हो जाए।
सत्य समय के साथ