टि निउज वर्ल्ड:-“मुस्लिम पर्सनल लॉ क्या है”
प्रिय पाठक,
इस्लाम ज़िंदगी के तमाम पहलुओं में रहनुमाई करता है और ईमान लाने वालों के लिए क़ानून देता है।इन क़ानूनों का एक हिस्सा वह है जिसमें ख़ानदानी निज़ाम के बारे में हिदायतें दी गई हैं और ख़ानदान के लोगों के हक़ और उनकी ज़िम्मेदारियां तय की गई हैं। इन्हें और अरबी मैं क़वानीने- अहवाले-शख्सिया’ और हिंदी (उर्दू) मैं ‘ख़ानदानी क़ानून’ और अंग्रेज़ी में Personal Law या Family Law कहा जाते है। भारत में मुस्लिम शासनकाल में ज़िंदगी के अधिकतर विभागों में इस्लामी क़ानून लागू थे और मुसलमान उन पर अमल करते थे, लेकिन जब देश की सत्ता अंग्रेज़ी के हाथ में आई तो उन्होंने धीरे- धीरे इस्लामी क़ानूनों की जगह ब्रिटिश क़ानून लागू करने की शुरू किए। पहले फौजदारी क़ानून ख़त्म किया, फिर गवाही का क़ानून और मुंआहिदों के क़ानून ख़त्म किए, फिर ख़ानदानी क़ानूनों को बदलने की तैयारी की जाने लगी। उस वक़्त मुस्लिम उलमा हरकत में आए। उन्होंने इसके खिलाफ़ आवाज़ उठाई और पूरे देश में आंदोलन चलाया। उनकी जबरदस्त कोशिशों के बाद 1937 ई•में ‘शरीअत एप्लीकेशन एक्ट’ मंज़ूर हुआ। इस एक्ट के तहत निकाह, तलाक़, ख़ुला, मुबारत, फ़स्खे-निकाह (निकाह ख़त्म हो जाना), हिज़ानित(लेपालक),हिबा,वसीयत,विरासत आदि से सम्बन्धित मामलों में अगर दोनों पक्ष मुसलमान हों तो उनका फ़ैसला इस्लामी शरीयत के कानून को रस्मो-रिवाज पर प्रधानता होगी। उसी को अब ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ’ के नाम से जाना जाता है। देश की आज़ादी के बाद जब संविधान बना तो उसमें ‘बुनियादी हुक़ूक़’ (मूल अधिकारों) के तहत सभी नागरिकों के लिए धर्म और अभिव्यक्ति की आज़ादी और हर धर्म के माननेवालों के लिए अपने धर्म पर चलने की आज़ादी की धाराएं शामिल की गई। ये धाराएं मुस्लिम पर्सनल लॉ की सुरक्षा के गारंटी देती हैं, लेकिन अफ़सोस की बात यह है कि साथ ही संविधान के ‘मार्गदर्शक सिद्धांत'(Directive Principles) में एक धारा (धारा 44) यह भी रक्ष दी गई कि सरकार देश में ‘समान नागरिक संहिता'(Common Civil Code) बनाने की कोशिश करेगी। ये दोनों बातें आपस में टकराती हैं, इसी लिए संविधान सभा के मुस्लिम सदस्यों ने उस वक़्त इस पर ऐतराज़ किया था, लेकिन फिर भी समान नागरिक संहिता से सम्बन्धित यह धारा संविधान में शामिल रही। इसी को बुनियाद बनाकर समय-समय पर मुस्लिम पर्सनल लॉ को ख़त्म करने और देश में समान नागरिक संहिता को लागू करने की कोशिश की जाती है और देश की अदालतें भी ऐसे फ़ैसले सुनाती हैं जो मुस्लिम पर्सनल लॉ से टकराते हैं।
सत्य समय के साथ है